भारत में कोरोना ने बड़ी तेजी से पैर फैला ली है. कोरोना की इस दूसरी लहर को सुनामी माना जा सकता है. हर रोज 3 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आने लगे हैं. भारत की स्तिथि पूरी दुनिया में सबसे ख़राब हो चुकी है. विश्व गुरु बनने की बात करने वाला भारत अपने नागरिकों को इलाज तक नहीं मुहैया करवा पा रहा है. ऐसा नहीं है कि इस लहर से निपटने को हमारे पास पर्याप्त समय नहीं था. मगर इन सबके बावजूद आज की जो स्तिथि है इसे सही दिशा में काम करके रोका जा सकता था. मगर ऐसा है " हमारा गाँव दौर में बस इसलिए हारा, क्यूंकि जो दौर सकते थें वो बैसाखियाँ बना रहें थे" पाकिस्तानी शायर तहजीब हाफी की शायरी यहाँ सटीक बैठी. जब हमारी सरकार कोरोना को लेकर रणनीति बना कर जमीनी स्तिथि सुधार सकती थी, तब हमारी सरकार और सिस्टम में बैठे लोग राजनीति में व्यस्त थें.

एक नेता था, जो पिछले साल से बार बार बोल रहा था. सुनामी आने वाली है. आई भी. मगर हम तैयार नहीं थें, क्यूंकि जो राज करने के लायक थें उनको तो हमने विपक्ष में बैठा रखा है और जो कुर्सी पर हैं वो तो हमारे सर पर बैठे हैं. जिनको जमीन में होना चाहिए था वो राजनीतिक मंचों से रैली कर रहें थें. कभी बिहार जीतने की कवायद में तो कभी बंगाल. सत्ता की भूख ही ऐसी होती है, ऐसी भूख जिसके सामने जलती चिता की लपट की क्या मोल. 

हम बैठे बैठे ये इंतज़ार करते रहें की दूसरी लहर कब आएगी. जो हमे सतर्क करते रहें उन्हें हमने निचा दिखाने की पूरी कोशिश की. लोगो को जागरूक करने की जगह हमने ऐसे बाते फैला दी कि लोग कोरोना को बीमारी तक नहीं मानने लगे. भारत में सच से ज्यादा झूठ जल्दी पैर फैलाता है. हमारी राजनीतिक पार्टियाँ को हमारे वोट से ज्यादा और कुछ नहीं चाहिए.

कोरोना की बढती रफ़्तार पर अब लोगों की आंख खुल रही है मगर देर इतना हो चूका है कि कितने लोग अपनी आंख हमेशा के लिए बंद कर चुके हैं. हमारे आस पास लोग मौत से लड़ रहें हैं, आत्मनिर्भरता के साथ. ये वही आत्मनिर्भरता है जिसकी बात हमारे सिस्टम के लोग कर रहें थें. हाँ, जरुरी बात है सरकार और सिस्टम एक है. जोड़ जोड़ से बोलिए, जितना जोड़ से बोल सकते हैं उतना जोड़ से बोलिए. क्यूंकि सरकार अच्छा नहीं सिस्टम वालों ने अपने पालतू मीडिया चैनल वालों को काम पर लगा दिया है, जिस सरकार के दोनों हाथ खून से सने हैं उनके माथे से ये कलंक हटा सिस्टम नाम पर दाल दो. भाई तो बात तो वहीं है, साहेब हीं सिस्टम है और सिस्टम ही साहेब!

मद्रास हाई कोर्ट ने बढ़ते मामलों की संख्या पर बड़ी टिप्पणीं करते हुए कहा है कि दूसरी लहर ने जिस तरीके से तबाही मचाई है उसकी पूरी की पूरी जिम्मेदारी चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को जाती है. मगर आपने भी आते आते बड़ी देर करदी. जब तमिलनाडू में चुनाव हो रहा था उस वक्त शायद आप भी चुनाव में मतदान करने गए होंगे. हम सबने अपनी सरकार को जीभर मन का करने दिया. हमारी सरकार इधर उधर की बातों में उलझी रही. किसानों का हक मारा, तो वो मैदान में डट गए. मगर पूरी सिस्टम उनको बदनाम करने लगी. 

देखिए क्या होता है आगे. कितने लोग हमारे बिच से चले जाते हैं, कितने लोग बच जाते हैं. मगर याद रखियेगा, ये जो दर्द भरी आवाज जो पूरे देश में गूँज रही है ये आपको और हमे याद दिलाती रहेगी इस सिस्टम की. ये साहब वाला सिस्टम है, जिसने लोगो को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया. याद रखियेगा, हालाँकि हम भारतीय किसी भी बात को जरुरत से पहले हीं भूल जाते है. तब तक जबतक हालात ठीक नहीं होते हैं लोगों की मदद कीजिए, हिम्मत कीजिए. आपकी कोशिश हीं आपके लोगो को हिम्मत देगी. साथ लड़ेंगे क्यूंकि यहीं जरुरत है हम कोरोना से जीतने की बात करते हैं मगर कोरोना से कितनी जिंदगियां ही हार गई. 

"आत्मनिर्भरता से लड़ो, जैसे अबतक हम सब मिलकर लड़ रहे हैं...                                                                                                                                                                                    सत्ता में जो बैठे हैं, वही सिस्टम हैं, उन्हें कीमत नहीं है हमारे जान की.....                                                                                                                                                                                  अगर होती तो ऐसे नहीं मरते हमारे अपने जैसे मर रहें हैं! "

 

( लेखक के ये अपने विचार है. लेखक - Suraj Kumar Rajak )